कोविड-19 महामारी और उसे फैलाने वाले वायरस को लेकर कई तरह की सूचनाएं व्याप्त हैं. लेकिन इस बारे में बहुत सारी गलत और भ्रामक सूचनाएं भी पसरी हुई हैं. सही क्या है और गलत क्या- ये समझने के लिए वैज्ञानिक समझ होना जरूरी है.क्या आप इस बारे में कभी खिन्न हुए है कि कैसे शोधकर्ता, महामारी के दौरान दिशा निर्देशों को बदलते रहे हैं? या इस बात पर खफा हुए हैं कि वैकल्पिक विशेषज्ञों को वो तवज्जो नहीं मिली जिसकी उन्हें दरकार थी? आखिरकार उनमें से कई लोग किसी न किसी रूप में डॉक्टर और प्रोफेसर भी हैं|
एक भरोसेमंद जानकार किसे माना जा सकता है और किसे नहीं? आखिर क्यों वैज्ञानिक अपनी कही बातों पर कायम नहीं रहते हैं? दूसरे शब्दों में, आखिर विज्ञान काम करता भी कैसे है? पहले, कुछ बुरी खबर. विज्ञान कभी भी सच या निश्चित ज्ञान की इच्छा को पूरा नहीं कर पाएगा. वो ऐसा करने का दावा करता भी नहीं है. बर्लिन के शारिटे अस्पताल में आघातों पर शोध करने वाले उलरिष डीरनागेल कहते हैं, “विज्ञान एक ऐसी प्रक्रिया है जो हमेशा खुद को सवालों के घेरे में रखती है, और जिसके जरिए वो खुद में सुधार करती जाती है.” डीरनागेल और उनके सहयोगी वैज्ञानिक, बर्लिन स्वास्थ्य संस्थान (बीआईएच) में बायोमेडिकल रिसर्च में गुणवत्ता प्रबंधन के प्रभारी हैं, एक तरह से उस पर शोध कर रहे हैं. क्या किस्सों कहानियों पर भरोसा करें?
यूं तो वैज्ञानिक कार्यों में आगामी अध्ययनों और संशोधनों-सुधारों की मांग बनी रहती है, फिर भी कई परिकल्पनाओं और निष्कर्षों का समान वजन नहीं होता है. महामारी की इस अवस्था के दौरान बहुत से किस्सों में से एक ये है, “मेरी एक दोस्त दाई है और उसने देखा है कि कई औरतों को टीका लगने के बाद गर्भपात हुआ है” ये ऐसे किस्से हैं जो लोगों में सबसे पहले तो एक किस्म का खौफ भर देते हैं, आखिरकार दाई भी एक औरत है और जानती है कि वो क्या कह रही है. इस तरह की बात दाई से सुनने को मिले या नहीं, ऐसे किस्से मामले को और नजदीकी से देखने को बाध्य करते हैं. डीरनागेल कहते हैं, “एक किस्से से एक परिकल्पना निश्चित रूप से तैयार हो जाती है. लेकिन कोई कारण संबंध स्थापित करने के लिए उस परिकल्पना का नियंत्रित अध्ययनों में परीक्षण करना होता है” गर्भ गिरने और टीकों के बीच में कोई संबंध नहीं पाया गया है.